बाढ़ प्रबंधन: केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह ने रविवार को मानसून के दौरान देश के विभिन्न हिस्सों में आने वाली बाढ़ से निपटने की तैयारियों की समीक्षा के लिए एक उच्च स्तरीय बैठक की अध्यक्षता की। केंद्रीय गृह मंत्री ने देश में बाढ़ के खतरे को कम करने के लिए एक व्यापक और दूरगामी नीति तैयार करने के दीर्घकालिक उपायों की भी समीक्षा की।
बैठक के दौरान गृह मंत्री ने पिछले वर्ष हुई बैठक में लिए गए निर्णयों पर की गई कार्रवाई की भी समीक्षा की। साथ ही बैठक में बाढ़ प्रबंधन के लिए सभी एजेंसियों द्वारा अपनाई जा रही नई तकनीकों और उनके नेटवर्क के विस्तार पर भी चर्चा की गई।
शाह ने ग्लेशियल लेक आउटबर्स्ट फ्लड (जीएलओएफ) से निपटने की तैयारियों की भी समीक्षा की। उन्होंने बाढ़ और जल प्रबंधन के लिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा भारतीय अंतरिक्ष अनुसंधान संगठन (इसरो) द्वारा उपलब्ध कराई गई सैटेलाइट इमेजरी का अधिकतम उपयोग करने पर भी जोर दिया।
भारत का आपदा प्रबंधन ‘शून्य दुर्घटना दृष्टिकोण’ के साथ आगे बढ़ रहा है
गृह मंत्री ने कहा कि प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी के नेतृत्व में भारत का आपदा प्रबंधन ‘शून्य हताहत दृष्टिकोण’ के साथ आगे बढ़ रहा है।
उन्होंने सभी राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों से बाढ़ प्रबंधन के लिए राष्ट्रीय आपदा प्रबंधन प्राधिकरण (एनडीएमए) द्वारा जारी किए गए परामर्शों को समय पर लागू करने की अपील की और भारत मौसम विज्ञान विभाग (आईएमडी) और केंद्रीय जल आयोग (सीडब्ल्यूसी) को बाढ़ पूर्वानुमान में उपयोग किए जाने वाले सभी उपकरणों को पुनः व्यवस्थित करने की प्रक्रिया जल्द से जल्द पूरी करने का निर्देश दिया।
शाह ने संबंधित विभागों को सिक्किम और मणिपुर में हाल ही में आई बाढ़ का विस्तृत अध्ययन करने और गृह मंत्रालय (एमएचए) को रिपोर्ट प्रस्तुत करने का निर्देश दिया। उन्होंने यह भी सुनिश्चित करने का निर्देश दिया कि सभी प्रमुख बांधों के बाढ़ द्वार अच्छी स्थिति में हों। श्री शाह ने कहा कि सीडब्ल्यूसी के बाढ़ निगरानी केंद्र हमारी आवश्यकताओं और अंतरराष्ट्रीय मानकों के अनुरूप होने चाहिए।
गृह मंत्री ने कहा कि गैर-बारहमासी नदियों में मिट्टी का कटाव और गाद जमने की अधिक संभावना होती है, जिसके परिणामस्वरूप बाढ़ आती है। उन्होंने निर्देश दिया कि बाढ़ प्रबंधन को बेहतर बनाने के लिए नदियों के जलस्तर के पूर्वानुमान प्रणाली को उन्नत करने के प्रयास किए जाने चाहिए।
शाह ने कहा कि बाढ़ की स्थिति में सड़कों पर होने वाले जलभराव से निपटने के लिए प्राकृतिक जल निकासी प्रणाली को सड़क निर्माण के डिजाइन का अभिन्न अंग होना चाहिए। उन्होंने कहा, “पूर्वोत्तर में कम से कम 50 बड़े तालाब बनाए जाने चाहिए ताकि ब्रह्मपुत्र नदी के पानी को मोड़कर उन तालाबों में संग्रहित किया जा सके। इससे उन क्षेत्रों में कम लागत पर कृषि, सिंचाई और पर्यटन को विकसित करने में मदद मिलेगी और बाढ़ से निपटने में भी मदद मिलेगी और इससे अंततः स्थानीय अर्थव्यवस्था को लाभ होगा।”
जंगल में आग लगने की घटनाओं पर शाह की प्रतिक्रिया
शाह ने एनडीएमए और पर्यावरण, वन एवं जलवायु परिवर्तन मंत्रालय (एमओईएफसीसी) को निर्देश दिया कि वे जंगल में आग लगने की घटनाओं को रोकने के लिए उचित एहतियाती कदम उठाएं। इसके लिए उन्होंने नियमित रूप से फायर लाइन बनाने, सूखी पत्तियों को हटाने और स्थानीय निवासियों तथा वन कर्मियों के साथ समय-समय पर मॉक ड्रिल करने की जरूरत पर जोर दिया। इसके साथ ही उन्होंने एक ही स्थान पर बार-बार जंगल में आग लगने की घटनाओं का विश्लेषण करने को भी कहा। गृह मंत्री ने एनडीएमए को जंगल में आग लगने की घटनाओं से निपटने के लिए एक विस्तृत मैनुअल तैयार करने को भी कहा।
उन्होंने निर्देश दिया कि बिजली गिरने के बारे में आईएमडी की चेतावनी एसएमएस, टीवी, एफएम रेडियो और अन्य माध्यमों से समय पर जनता तक पहुंचाई जानी चाहिए। उन्होंने विभिन्न विभागों द्वारा विकसित मौसम, वर्षा और बाढ़ की चेतावनी से संबंधित ऐप को एकीकृत करने की आवश्यकता पर बल दिया ताकि इनका लाभ लक्षित आबादी तक पहुंच सके। शाह ने निर्देश दिया कि चूंकि बाढ़ सहित किसी भी आपदा के समय समुदाय सबसे पहले प्रतिक्रिया देने वाला होता है, इसलिए विभिन्न एजेंसियों द्वारा चलाए जा रहे सामुदायिक जागरूकता कार्यक्रमों में समन्वय और एकीकरण होना चाहिए ताकि उनका अधिकतम प्रभाव हो सके।
हर साल, बिहार, असम और अन्य पूर्वी राज्यों के बड़े इलाके मानसून की बारिश के कारण विभिन्न नदियों में बढ़ते जल स्तर के कारण बाढ़ का सामना करते हैं। उत्तराखंड, हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और कुछ अन्य राज्यों में भी मानसून के मौसम में भूस्खलन और अन्य बारिश से संबंधित समस्याओं का सामना करना पड़ता है। इसके अलावा, तमिलनाडु, केरल और जम्मू और कश्मीर में हाल के वर्षों में बाढ़ का सामना करना पड़ा है।
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