दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।
दिल्ली उच्च न्यायालय ने बुधवार को शहर की गीता कॉलोनी के पास और यमुना बाढ़ के मैदान के पास स्थित प्राचीन शिव मंदिर को दिल्ली विकास प्राधिकरण (डीडीए) द्वारा ध्वस्त किए जाने के खिलाफ दायर याचिका को खारिज कर दिया। याचिका को खारिज करते हुए उच्च न्यायालय ने कहा कि यह कहने की जरूरत नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की जरूरत नहीं है, बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं।
न्यायमूर्ति धर्मेश शर्मा की पीठ ने कहा कि याचिका दायर करने वाली प्राचीन शिव मंदिर एवं अखाड़ा समिति अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में विफल रही है, जिससे कि वह मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रख सके।
“उपर्युक्त चर्चा के मद्देनजर, यह न्यायालय बिना किसी हिचकिचाहट के पाता है कि याचिकाकर्ता सोसायटी मंदिर सेवाओं को चलाने के लिए नागरिक संपत्ति का उपयोग और कब्जा जारी रखने के लिए अपने पास मौजूद किसी भी कानूनी अधिकार को प्रदर्शित करने में बुरी तरह विफल रही है।”
अदालत ने आगे कहा कि याचिकाकर्ता के विद्वान वकील द्वारा यह आधे-अधूरे मन से दिया गया तर्क कि मंदिर के देवता होने के नाते भगवान शिव को भी वर्तमान मामले में पक्षकार बनाया जाना चाहिए, अपने सदस्यों के निहित स्वार्थों की पूर्ति के लिए पूरे विवाद को एक अलग रंग देने का एक हताश प्रयास है।
अदालत ने अपने फैसले में कहा, “यह कहने की आवश्यकता नहीं है कि भगवान शिव को हमारी सुरक्षा की आवश्यकता नहीं है; बल्कि हम लोग उनकी सुरक्षा और आशीर्वाद चाहते हैं। इसमें कोई संदेह नहीं है कि यदि यमुना नदी के तल और बाढ़ के मैदानी क्षेत्रों को सभी अतिक्रमणों और अनधिकृत निर्माण से मुक्त कर दिया जाए तो भगवान शिव अधिक प्रसन्न होंगे।”
उच्च न्यायालय ने मंदिर सोसायटी को मंदिर में रखी मूर्तियों और अन्य धार्मिक वस्तुओं को हटाने तथा उन्हें किसी अन्य मंदिर में रखने के लिए 15 दिन का समय दिया।
उच्च न्यायालय ने आदेश पारित करते हुए कहा, “यदि वे ऐसा करने में विफल रहते हैं, तो प्रतिवादी डीडीए को यह सुनिश्चित करने का निर्देश दिया जाता है कि मूर्तियों को किसी अन्य मंदिर में रखा जाए, या यदि धार्मिक समिति से किसी सुझाव के लिए संपर्क किया जाता है, तो वे निर्देश दें।”
उच्च न्यायालय ने आगे कहा कि डीडीए को अनधिकृत निर्माण को ध्वस्त करने की स्वतंत्रता होगी और याचिकाकर्ता सोसायटी तथा उसके सदस्य ऐसी ध्वस्तीकरण प्रक्रिया में कोई बाधा या रुकावट पैदा नहीं करेंगे।